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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें

आशा की नयी किरणें

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :214
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1019
आईएसबीएन :81-293-0208-x

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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...

शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये


जो शक्तियाँ ईश्वरीय देनके रूपमें प्रयोग, उपकार या समाज-सेवा आदिके लिये आपको दी गयी है, उनका निरन्तर उपयोग कीजिये। प्रतिदिन उन्हें कार्यमें लेनेसे शक्तियोंका विकास होता है, पर निश्चेष्ट छोड़ देनेसे वे क्षीण हो जाती हैं। अंग्रेजीमें एक कहावत है-'प्रतिदिन काममें आनेवाली चाबी तेज चमकती है।' अर्थात् जो चाबी रोज काममें नहीं आती, वह जंग लगकर नष्ट हो जाती है। यही कहावत हमारी शक्तियोंके सम्बन्धमें भी है। हम जिस-जिस शक्तिसे काम लेते रहेंगे, वही पुष्ट रहेगी, शेष नष्ट हो जायगी। शक्तियों आपसे यह माँग करती हैं कि उनसे निरन्तर काम लिया जाय, कभी खाली न छोड़ा जाय। वे उस भूतकी तरह हैं जिसे कुछ-न-कुछ काम चाहिये, जो कभी भी आलस्यमें नहीं बैठ सकता।

उदाहरणके लिये अपने शरीरको ही ले लीजिये। यदि आपको खूब खिलाया-पिलाया जाय और जेलखानेमें बंद कर दिया जाय, जहाँ आप सारे दिन चारपाईपर पड़े रहें तो पाचनक्रिया और रक्तसंचारमें खराबी आने लगेगी, शरीर दुबला हो जायगा, एक-एक क्षण काटना दूभर हो जायगा, प्रगाढ़ निद्राका आनन्द आपको न मिल सकेगा, भूख-प्यास, चेहरेका सौन्दर्य सब क्षीण हो जायग। हमारा शरीर एक मशीनकी तरह है। जैसे व्यर्थ पड़े रहनेसे अच्छे-से-अच्छे इंजिनको जंग चाट जाता है और उसे चलाना कठिन हो जाता है, उसी प्रकार पहलवान-से-पहलवान व्यक्ति भी केवल खाये और पड़ा रहे, तो रोगी हो जायगा। आपने प्रायः उन साधुओंको देखा होगा, जो एक हाथ ऊँचा उठाये रहते हैं। बहुत समय व्यतीत होनेपर वह सूख जाता है। उसमें रुधिरका संचार बंद हो जाता है। उस हाथकी शक्तिका उपयोग न होनेसे उसकी शक्तियाँ मारी जाती हैं। अतः हमें चाहिये कि अपने शरीरसे पर्याप्त कार्य लें, किसी अवयवको आलस्यके जंगमें न फँसने दें। शारीरिक शक्तियोंका उपयोग करनेसे शरीरका अंग-अंग शक्तिसे दमक उठेगा, हम बलवान् बन जायँगे, पुष्ट और बलिष्ट हाथ-पाँवके स्वामी बनेंगे। व्यायाम क्या है? व्यायाम वह विधि है जिसके द्वारा शरीरके सभी अवयवोंसे काम लिया जाता है। फलतः शक्तियाँ बढ़ती हैं।

शरीरकी भांति ही मस्तिष्क और बुद्धि भी निरन्तर उपयोग, नये-नये विषयोंके अध्ययन, स्वाध्याय, मनन, पठन-पाठन, भ्रमण, सद्यन्थावलोकनसे बढ़ती है। प्रत्येक पुस्तक एक ऐसे मस्तिष्कका सत्संग है जिसके साथ रहकर हम नया ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। नये-नये व्यक्तियोंसे मिलिये; नये दृश्य, नयी-नयी घटनाएँ देखिये और उनमें सार-तत्त्व, अनुभवपूर्ण उपयोगी तत्त्वोंको ग्रहण कीजिये। इन अनुभवोंसे आपको जीवनयात्रामें लाभ होगा।

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    अनुक्रम

  1. अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
  2. दुर्बलता एक पाप है
  3. आप और आपका संसार
  4. अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
  5. तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
  6. कथनी और करनी?
  7. शक्तिका हास क्यों होता है?
  8. उन्नतिमें बाधक कौन?
  9. अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
  10. इसका क्या कारण है?
  11. अभावोंको चुनौती दीजिये
  12. आपके अभाव और अधूरापन
  13. आपकी संचित शक्तियां
  14. शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
  15. महानताके बीज
  16. पुरुषार्थ कीजिये !
  17. आलस्य न करना ही अमृत पद है
  18. विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
  19. प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
  20. दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
  21. क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
  22. मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
  23. गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
  24. हमें क्या इष्ट है ?
  25. बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
  26. चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
  27. पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
  28. स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
  29. आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
  30. लक्ष्मीजी आती हैं
  31. लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
  32. इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
  33. लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
  34. लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
  35. समृद्धि के पथपर
  36. आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
  37. 'किंतु' और 'परंतु'
  38. हिचकिचाहट
  39. निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
  40. आपके वशकी बात
  41. जीवन-पराग
  42. मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
  43. सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
  44. जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
  45. सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
  46. आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
  47. जीवनकी कला
  48. जीवनमें रस लें
  49. बन्धनोंसे मुक्त समझें
  50. आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
  51. समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
  52. स्वभाव कैसे बदले?
  53. शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
  54. बहम, शंका, संदेह
  55. संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
  56. मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
  57. सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
  58. अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
  59. चलते रहो !
  60. व्यस्त रहा कीजिये
  61. छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
  62. कल्पित भय व्यर्थ हैं
  63. अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
  64. मानसिक संतुलन धारण कीजिये
  65. दुर्भावना तथा सद्धावना
  66. मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
  67. प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
  68. जीवन की भूलें
  69. अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
  70. ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
  71. शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
  72. ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
  73. शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
  74. अमूल्य वचन

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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